गैर फ़िल्मी (1962)
बैनर : बॉम्बे फिल्म उद्योग की रक्षा समिति द्वारा प्रायोजित
संगीतकार : खय्याम
गीतकार : जान निसार अख्तर
फिल्मांकन : राज कुमार, राजेंदर कुमार, सुनील दत्त
सह - गायक/गायिका :
गीत (HMV-LP: D/ELRZ 13)
एक है अपना गगन,
एक है अपना जहाँ,
एक है अपना वतन,
अपने सभी सुख एक हैं,
अपने सभी ग़म एक हैं,
आवाज़ दो, आज़ाद दो हम एक हैं, हम एक हैं.....
...
यह वक्त खोने का नहीं,
यह वक्त सोने का नही,
जागो वतन खतरे में है,
सारा चमन खतरे में हैं,
फूलों के चेहरे ज़र्द हैं,
ज़ुल्फ़ें फ़िज़ा की गर्द हैं,
उमड़ा हुआ तूफ़ान हैं,
नर्वे में हिंदुस्तान है,
दुश्मन से नफरत फ़र्ज़ है,
घर की हिफाज़त फ़र्ज़ है,
बेदार हो बेदार आमादा ऐ पेकार हो,
आवाज़ दो, आवाज़ दो हम एक हैं, हम एक हैं.....
...
यह है हिमालिया की ज़मीन,
ताज ओ अजंता की ज़मीन,
संगम हमारी आन है,
चित्तौड़ अपनी शान है,
गुलमर्ग का महका चमन,
जमना का तट वो गुलतपन,
गंगा के धारे अपने हैं,
यह सब हमारे अपने हैं,
कह दो कोई दुश्मन नज़र,
उठे न भूले से इधर,
कह दो के हम बेदार हैं,
कह दो के हम तैयार हैं,
आवाज़ दो, आवाज़ दो हम एक हैं, हम एक हैं......
...
उठो जमाना ने वतन,
बांधे हुए सर से कफ़न,
उठो दकन की ओर से,
गंगो जमन की ओर से,
पंजाब के दिल से उठो,
सजलुज के साहिल से,
उठो महाराष्ट्र की ख़ाक से,
दिल्ली की अर्ज़े पाक से,
बंगाल से मद्रास से,
कश्मीर के बाग़ात से,
नेफा से राजस्थान से,
कुल ख़ाक ऐ हिंदुस्तान से,
आवाज़ दो , आवाज़ दो हम एक हैं, हम एक हैं ....
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